मन के दीपक जलो ,
आशा चंचल सी है.............
तू अकेला जला ,
साथ अक्षय भला
मन के तारो जलो ,
धूप अंचल सी है
मन के दीपक जलो ,
आशा चंचल सी है.....................
हर दिशा प्रकम्पित,
उर में तू ही अंकित
झुलसे परों के प्राण,
व्यथा संचल सी है
मन के दीपक जलो ,
आशा चंचल सी है....................
खोई प्राणों की सुध ,
तन्मय तड़ित् सी क्रुद्ध
बुझे दीपक जलो ,
लौ ये मंचल सी है
मन के दीपक जलो ,
आशा चंचल सी है.....................
अक्षय कोषों में तू ,
मन की साँसों में तू
जलते नभ में जलो ,
प्रीत कंचन सी है
मन के दीपक जलो ,
आशा चंचल सी है..................
स्नेह हित नित रहे ,
क्षण सुरभित उनसे कहे
सिहर सिहर जलो ,
तन में हलचल सी है
मन के दीपक जलो ,
आशा चंचल सी है..................
.........................गुरु कवि हकीम.............
Sunday, January 25, 2009
Friday, January 16, 2009
'तुझसे कहूँ'
जज्बातों पर मेरे,रहमो-नज़र कर,
इनायत हो,पाकीजा मेरे शामो-सहर कर,
मेरी दुआए भी अब मुक्कमल हो!
मेरे दिल की जमीं पर ऐसी, नमाज़-ऐ-अज़र कर. फरियाद हे!
अब मुझे तु प्यार कर...
मेरे खवाबो को भी,रहमतों नवाज़ कर,
जेहन में मेरे भी, छोटा एक घर कर,
उस खुदा का रुतबा, और बड़ा ज़रा !
आकर आवाज़ मेरी, नई ग़ज़ल कर. फरियाद हे!
अब मुझे तु प्यार कर...
हो, न यकीं मुक्कदर पर,
भावो से मेरे अजान,वो गीता-उवाच कर,
मिसालों में कहीं रख छोड़ मुझे,
थाम लें दामन,दिल पर रहमो-नज़र कर, बस फरियाद हे!
अब मुझे तु प्यार कर......अब मुझे तु प्यार कर...
................अमन.............
कवि का परिचय ....भारत के ह्रदय मध्य प्रदेश में जन्मे इस बच्चे की बहुमुखी प्रतिभा कविता और लेखन के क्षेत्र में अदभूत है ..इंदौर शहर का यह बालक काव्य के क्षेत्र में अपने शहर का नाम रोशन करेंगा ...इतनी कम उम्र में इतनी अच्छी रचना अपने आप में माँ सरस्वती की कृपा ही हों सकती है...
इनायत हो,पाकीजा मेरे शामो-सहर कर,
मेरी दुआए भी अब मुक्कमल हो!
मेरे दिल की जमीं पर ऐसी, नमाज़-ऐ-अज़र कर. फरियाद हे!
अब मुझे तु प्यार कर...
मेरे खवाबो को भी,रहमतों नवाज़ कर,
जेहन में मेरे भी, छोटा एक घर कर,
उस खुदा का रुतबा, और बड़ा ज़रा !
आकर आवाज़ मेरी, नई ग़ज़ल कर. फरियाद हे!
अब मुझे तु प्यार कर...
हो, न यकीं मुक्कदर पर,
भावो से मेरे अजान,वो गीता-उवाच कर,
मिसालों में कहीं रख छोड़ मुझे,
थाम लें दामन,दिल पर रहमो-नज़र कर, बस फरियाद हे!
अब मुझे तु प्यार कर......अब मुझे तु प्यार कर...
................अमन.............
कवि का परिचय ....भारत के ह्रदय मध्य प्रदेश में जन्मे इस बच्चे की बहुमुखी प्रतिभा कविता और लेखन के क्षेत्र में अदभूत है ..इंदौर शहर का यह बालक काव्य के क्षेत्र में अपने शहर का नाम रोशन करेंगा ...इतनी कम उम्र में इतनी अच्छी रचना अपने आप में माँ सरस्वती की कृपा ही हों सकती है...
Monday, January 12, 2009
Sunday, January 11, 2009
पयामे दर्द ''''''''''''''''''''''''''''''''
इन आँखों की जवानी में पयामे दर्द भी है
और दहकते ख्वाब भी है किसी मंजर के
गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं "हकीम"
बादास्ता सीने में दाग भी है उसके खंजर के ........
........गुरु कवि हकीम॥
और दहकते ख्वाब भी है किसी मंजर के
गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं "हकीम"
बादास्ता सीने में दाग भी है उसके खंजर के ........
........गुरु कवि हकीम॥
Saturday, January 10, 2009
कौन कहता है .............
.
कौन कहता है
की तुमसे दूर हूँ,
मेरी सासों और धड़कन में
ये सोपान निरंतर तुम्हारे
साथ होता है,
पंखों पर उड़ के
ज्योति स्पर्श हित
सदैव मन में सोता है,
प्रेमी पतंग की भांती
युही आस पास
प्रवृतियाँ में बसा
रहता है,
कौन कहता है ..
मूक प्राणों में
ये क्षण निठुर नहीं होते,
ना ही कज्जल-दिशा में
किसी के ख्वाब खोते,
उर का ये उपवन
नवनिधियोंमय सा भारी है,
और तेरी सुदगी में
ये आँगन सूना नहीं
बिन श्रृंगार-सदन जारी है,
वही ये अहसास होता है
कौन कहता है ॥ ........................................
........गुरु कवि हकीम...
..
कौन कहता है
की तुमसे दूर हूँ,
मेरी सासों और धड़कन में
ये सोपान निरंतर तुम्हारे
साथ होता है,
पंखों पर उड़ के
ज्योति स्पर्श हित
सदैव मन में सोता है,
प्रेमी पतंग की भांती
युही आस पास
प्रवृतियाँ में बसा
रहता है,
कौन कहता है ..
मूक प्राणों में
ये क्षण निठुर नहीं होते,
ना ही कज्जल-दिशा में
किसी के ख्वाब खोते,
उर का ये उपवन
नवनिधियोंमय सा भारी है,
और तेरी सुदगी में
ये आँगन सूना नहीं
बिन श्रृंगार-सदन जारी है,
वही ये अहसास होता है
कौन कहता है ॥ ........................................
..
अधखुले साधना के बंधन
पल प्रति पल बने ये रोदन
अवचेतन मन के अंधियारे
निष्ठुर से है ये उजियारे
उन्मय धारा की मोल व्यथा
प्रतिछाया बन वो अमिट कथा
पुरजोर हवा ,प्राणों का मन
चित्त विमुख हुआ ,क्यू ये बंधन
अधखुले साधना के बंधन .......................
तुम ढूँढ रहे शुन्य के पल
मैं ढूँढ रहा उसकी छाया
बेसुध पीड़ा, मन व्याकुल है
ये लोक वेदना की माया
अमरो का एक लोक मिला
घुल जाने की है चाह मुझे
इस पावन मन के भीतर से
क्यू आ रहा मन का क्रंदन
अधखुले साधना के बंधन................
ये नीलम मेघ बसे मन में
और शुन्य सार रचे तन में
पुरजोर हवा ,अवसाद बढे
जलना जिसका अधिकार नहीं
प्राणों का बस वहा शोध बढे
सूखे नयनो की भाषा से
मन महक आई मुझको चन्दन
अधखुले साधना के बंधन.....
आशा की इस मुस्कराहट पर
कम्पन होती हर आहट पर
इन जर्जर तारों के भीतर
मन उलझा है ये क्यू सीतर
प्राणों की क्रीड़ा है शुन्य
मेरे मन की पीडा है शून्य
शून्य के इस आगोश बीच
प्राणों के प्यालो में मधुबन
अधखुले साधना के बंधन..... .......
..............गुरु कवि हकीम........
पल प्रति पल बने ये रोदन
अवचेतन मन के अंधियारे
निष्ठुर से है ये उजियारे
उन्मय धारा की मोल व्यथा
प्रतिछाया बन वो अमिट कथा
पुरजोर हवा ,प्राणों का मन
चित्त विमुख हुआ ,क्यू ये बंधन
अधखुले साधना के बंधन .......................
तुम ढूँढ रहे शुन्य के पल
मैं ढूँढ रहा उसकी छाया
बेसुध पीड़ा, मन व्याकुल है
ये लोक वेदना की माया
अमरो का एक लोक मिला
घुल जाने की है चाह मुझे
इस पावन मन के भीतर से
क्यू आ रहा मन का क्रंदन
अधखुले साधना के बंधन................
ये नीलम मेघ बसे मन में
और शुन्य सार रचे तन में
पुरजोर हवा ,अवसाद बढे
जलना जिसका अधिकार नहीं
प्राणों का बस वहा शोध बढे
सूखे नयनो की भाषा से
मन महक आई मुझको चन्दन
अधखुले साधना के बंधन.....
आशा की इस मुस्कराहट पर
कम्पन होती हर आहट पर
इन जर्जर तारों के भीतर
मन उलझा है ये क्यू सीतर
प्राणों की क्रीड़ा है शुन्य
मेरे मन की पीडा है शून्य
शून्य के इस आगोश बीच
प्राणों के प्यालो में मधुबन
अधखुले साधना के बंधन..... .......
..............गुरु कवि हकीम........
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